Bharat ki Swatantrata ki kahani |भारत को आज़ादी कैसे मिली ?| Brief History of India's Independence

प्रिय पाठक, 

आज 15 अगस्त 2021 को हम भारत के लोग आज़ादी का 75वा वर्षगाठ मना रहे हैं। 15 अगस्त 1947 को हमें अंग्रेजी शासन के 200 सालों के गुलामी से आज़ादी मिली थी। आज़ादी से पहले भारत ब्रिटिश शासन का एक उपनिवेश था, जिसके अंतर्गत लोगों को तरह तरह के कठोर कानूनों को सहना पड़ा।आज हम भारत के आज़ादी के पीछे के इतिहास पर प्रकाश डालने जा रहे है, कि कैसे हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। कैसे हमारे भारत के लोगों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। हम खुशनसीब है कि हम आज़ाद भारत में जन्म लिए, जहाँ हमें बोलने की आज़ादी, देश में कहीं भी घूमने फ़िरने एवं रहने की स्वतंत्रता, किसी भी स्थान पर व्यापार करने की आज़ादी मिली है, जो हमें सविधान के भाग-3 के अनुच्छेद (12 -35 ) मे देखने को मिलता है। आइये, आज उन इतिहास के पन्नों को दुबारा पलटते है।


Happy Independence Day 2022




    ब्रिटिश शासन का आगमन 

    वर्ष 1599 में मर्चेंट एडवेंचर नाम से जाने जाने वाली व्यापारियों के समूह ने पूर्व के देशों से व्यापार करने क लिए एक कंपनी बनाई, इस कम्पनी को ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता है। सन 1600 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ ने एक रॉयल चार्टर द्वारा कंपनी को पूर्व में व्यापार करने की अनुमति दी। इसके तहत वर्ष 1608 में कंपनी ने भारत के पश्चिमी तट के पास सूरत में फैक्ट्री खोलने के उद्देश्य से मुग़ल शासक जहाँगीर के दरबार में शाही आज्ञा प्राप्त की। तत्पश्चात अंग्रेज़ों को भारत के सभी भागों में धीरे-धीरे फैक्ट्री खोलने का अधिकार प्राप्त होते चले गया। देश में राष्ट्रवादी भावना के अभाव के चलते और भारतीय शासकों के आपसी झगड़ों का फ़ायदा उठा कर ब्रिटिश कंपनी ने अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया। 


    "1857 की क्रांति" का आज़ादी में योगदान 

    1857 का विद्रोह भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रखता है। यह क्रांति अंग्रेजो की साम्राज्य विस्तार नीति और आर्थिक शोषण की नीतियों के परिणाम स्वरुप समाज के विभिन्न वर्गों में अंग्रेजी शासन के प्रति जन असंतोष के रूप में उभरा। यह असंतोष समय समय पर विभिन्न जन विद्रोह एवं सैन्य विद्रोह के रूप में फूटा,  जिसका परिणाम 1857 के विद्रोह के रूप में दिखी। इस विद्रोह में अनेक स्थानों पर विद्रोह का संचालन भिन्न-भिन्न नायकों ने किया, जिसमें प्रमुख रूप से दिल्ली से बहादुर शाह जफ़र, झाँसी से महारानी लक्ष्मीबाई, ग्वालियर से तात्या टोपे, जगदीशपुर से कुँवर सिँह ने अंग्रेजो से लोहा लिया विद्रोह की प्रगति के दौरान बैरकपुर से एक सैनिक मंगल पांडेय ने अपने अफसर की हत्या कर दी, जिसका कारण यह था की अंग्रेजों द्वारा चर्बी लगे कारतूसों का इस्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया गया था, जिससे हिंदू व मुस्लिम दोनों जातियों की धार्मिक भावना आहत हुई, जिससे विद्रोह की आग और भड़की। इस विद्रोह में किसान, दस्तकारो, मजदूरों, ज़मीदारों ने भी भाग लिया। इस विद्रोह के कारण कई स्थानों पर अंग्रेजी शासन कुछ समय के लिए समाप्त हो गयी थी।अंग्रेजों ने जिस क्रूरता से भारतीयों का दमन किया उससे भारतीयों के दिल में ब्रिटिश विरोधी भावना बढ़ गई, जिससे आगे चलकर आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन के लिए आधार तैयार हुआ।




    आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन की नींव 

    आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन में राष्ट्रीय जाग्रति पैदा करने के लिए उन्नीसवीं शताब्दी में बहुत सारे सामाजिक व धार्मिक आंदोलन हुए। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन आदि ने सती प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत आदि दोषों को दूर करने का प्रयास किया। प्रेस के विकास से बहुत बड़ी संख्या में राष्ट्रवादी समाचार पत्र निकले जिसमे सरकारी नीतियों की आलोचना की जाती थीं तथा स्वशासन, जनतंत्र आदि विचारों  को लोकप्रिय बनाया जिसमें बाल गंगाधर तिलक का योगदान अमूल्य है। 

    बाल गंगाधर तिलक का योगदान 

    बाल गंगाधर तिलक जी ने राष्ट्रीय एकता एवं जन जाग्रति के लिए शिवाजी व गणेश उत्सव जैसे सामाजिक कार्यक्रमों की शुरुवात की। तिलक जी ने मुंबई के बेलगांव में होमरूल लीग का गठन किया, उन्होंने स्वराज की माँग, शिक्षा व देशी भाषा का प्रयोग आदि योजना की माँग ब्रिटिश हुकूमत के सामने रखते हुए तिलक जी ने नारा दिया कि " स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूँगा।"



    महात्मा गाँधीजी  का राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान 


    महात्मा गाँधी सत्य व अहिंसा के सच्चे पुजारी थे, 1915 में वे दक्षिण अफ्रीका से अछूतोद्धार का सफल  संचालन कर भारत लौटे थे। उन्होंने 1920 में प्रथम जन आंदोलन असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया, वे सन 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड से काफी छुब्ध हुए, उन्होंने भारत में भी अछूतोद्धार दूर करने के सफल प्रयास किए।उन्होंने आगे चल कर 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का भी नेतृत्व किया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक व राजनितिक दोनों पहलू से अहिंसा व सत्यता के रास्ते भारत को आज़ाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


    क्रांतिकारी आंदोलन 

    1907 के सूरत अधिवेशन में जब भारत के राजनीतिक रंगमंच पर कांग्रेस के अंदर नरम दाल व गरम दाल का प्रादुर्भाव हुआ वही उस समय देश में एक दूसरी क्रांतिकारी विचारधारा उत्पन्न हुई। क्रांतिकारी आंदोलनकारी उदारवादियों की सविधानिक तरीकों एवं उग्रवादियों के स्वदेशी, बहिष्कार एवं निष्क्रिय प्रतिरोध के तरीकों के असफ़लता के कारण उपजा था। रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद आदि वीरों ने ब्रिटिश सत्ता को समाप्त कर संघीय गणतंत्र की स्थापना के उदेश्य से 1925 में काकोरी ट्रैन में डकैती कर सरकारी खजाने को लूटा। इस सन्दर्भ में अशफ़ाक़ उल्ला खा, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी जैसे वीरों को फांसी की सजा दी गई। 

    भगत सिंह का योगदान 

    भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे, जलियांवाला बाग़ हत्याकांड का भगत सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। भगत सिंह चंद्रशेखर आज़ाद व सुखदेव, राजगुरु के साथ मिल कर लाहौर के पुलिस अधीक्षक सांडर्स की हत्या कर दी, सांडर्स ने ही साइमन कमिशन विरोधी आंदोलन के समय लाठी चार्ज का आदेश दिया जिससे लाला लाजपत राय को चोट लगने से मृत्यु हो गया थी। भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिल कर 1929 में दिल्ली के केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका, जिसका उद्देश्य था 'बहरी सरकार को आवाज़ सुनाना' लाहौर षड्यंत्र में फॅसा कर भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को 23 मार्च 1931 में फांसी पर लटका दिया गयाचंद्रशेखर आज़ाद भी फ़रवरी 1931 में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में एक पुलिस के साथ भिड़ंत में पुलिस के हाथो न मरने के उद्देश्य से अपने आप को गोली मार ली।
                 

    आज़ाद हिन्द फ़ौज की भूमिका 

    1942 -1943 के बीच देश की सीमाओं के बाहर भारतीय राष्ट्रवाद को एक अनोखी अभिव्यक्ति मिलीं। यह अभिव्यिक्ति रासबिहारी बोस, कैप्टन मोहन सिंह और सुभाष चंद्र बोस की उग्र देशभक्ति के रूप में मिली। कप्तान मोहन सिंह ने इंडियन नेशनल आर्मी के नाम से आज़ाद हिन्द फ़ौज सिंगापुर में खड़ी की। इसकी कमान आगे चल कर सुभाष चंद्र बोस को मिली।सुभाष चंद्र बोस का असली मक़सद जापान की सहायता से भारत को स्वतंत्रता दिलाना था। द्वितीय विश्व के दौरान जब जापान सरकार ने अंडमान निकोबार में विजय प्राप्त की तब इसका शासन सुभाष चंद्र बोस के हाथों सौंप दी। रंगून में उन्होंने अस्थायी सरकार की राजधानी बनायीं। आज़ाद हिन्द फौज बर्मा में अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ी व विजय प्राप्त कर भारत की सीमा में प्रवेश की। प्रदेश में भारी वर्षा के कारण आज़ाद हिन्द फौज का जापान से संपर्क टूट गया तो मदद माँगने के लिए सुभाष चंद्र बोस हवाई जहाज़ द्वारा टोकियो जाते वक़्त उनका जहाज़ दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 

     

    भारत की स्वतंत्रता 

    द्वितीय विश्व युद्धोतर काल में राजनीतिक घटनाक्रम में तेजी से परिवर्तन हुए। 1945 में ब्रिटेन में मज़दूर दल के नेतृत्व में एटली की सरकार बनी जिसका रुख भारत के प्रति सहानुभूतिपूर्ण था, साथ ही भारत में मज़दूर व किसानों का लगातार आंदोलन एवं हड़ताल से, 1946 के चुनावों  में कांग्रेस के विजय से भारतीय अपेक्षाओ का बढ़ना आदि परिस्थितियों ने भारत से अंग्रेजों की वापसी सुनिश्चित कर दी। भारत में कांग्रेस व मुस्लिम लीग के गतिरोध की स्थिति को देखते हुए एटली ने फ़रवरी 1947 में घोषणा की, कि पूर्व ब्रिटिश सरकार उत्तरदायी भारतीयों को सत्ता सौंप देगी। इसे लागू करने के लिए अंतिम वायसराय के रूप में माउंटबेटन को भारत भेजा गया। माउंटबेटन योजना के तहत ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को पारित किया, जिसे कांग्रेस व मुस्लिम लीग के द्वारा स्वीकार किया गया। इस अधिनियम के अनुसार 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन कर भारत तथा पाकिस्तान नामक दो अधिराज्यों का गठन किया गया, विभाजन के चलते देश में काफी दंगे फ़साद हुए। साथ ही साथ भारत के देशी रियासतों को ब्रिटिश सरकार द्वारा यह स्वतंत्रता दी गयी थी कि वे अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकते हैं, परन्तु सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सभी देशी  रियासतों का भारत संघ में विलय कर लिया गया। इस तरह 15 अगस्त 1947 को रात 12 बजे से भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने लाल किला के प्राचीर से तिरंगा झंडा फ़हराया। 

    भारत की इस स्वतंत्रता में देश के लाखों लोगो ने बलिदान दिया, और भारत के एकता एवं अखंडता को बनाये रखने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी का योगदान अमूल्य है। आगे चलकर भारत के सविंधान निर्मात्रीयों द्वारा सबसे बड़ा लिखित सविंधान का निर्माण किया। 

    Happy Independence Day | 15 August 2022 poster



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    यह लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।  

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
    जय हिन्द जय भारत। 

    Yours Gyaan Inside
    Article by VIVEK
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