बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ | Bastar Dussehra in hindi


भारत में वैसे तो दशहरा का पर्व हर जगह समान रूप से मनाया जाता है। जिसमें रावण दहन कर भगवान श्री राम का धर्म पर अधर्म की विजय का उत्सव मनाया जाता है। इसी प्रकार से हर जगह विश्व में रावण का पुतला दहन कर यह दशहरा का उत्सव मनाया जाता है, परंतु छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में अनोखी प्रकार की दशहरा मनाई जाती है जो कि विश्वविख्यात है, इस दशहरा में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है बल्कि यह मां दंतेश्वरी देवी के पूजा अर्चना से जुड़ा पर्व है।

बस्तर दशहरा की पंरपरा और इसकी जनस्वीकृति इतनी अधिक है कि यह पर्व विश्व की सबसे अधिक समय तक मनाये जाने वाला पर्व है। यह बस्तर का दशहरा पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है।


छत्तीसगढ़ बस्तर दशहरा | Bastar Dussehra in hindi

    बस्तर  दशहरा (Bastar Dussehera in hindi)

    किवंदतियों के अनुसार बस्तर के शासक राजा पुरूषोत्तम देव ने 1408 में उड़ीसा स्थित श्री जगन्नाथ पुरी तक पदयात्रा की थी। जहाँ उन्होंने मंदिर में लाखों स्वर्ण मुद्राएं, आभूषण दान में दी। राजा के भक्ति को देख वहाँ के पुजारी के स्वपन में भगवान जगन्नाथ जी ने राजा पुरूषोत्तम देव को रथपति की उपाधि देने को कहा। पुजारी ने इस आदेश का पालन किया तथा 16 पहिएँ वाले रथ को भेंट किया, जिसे लेकर राजा पुरूषोत्तम देव पुरी धाम से बस्तर लौटे तभी से गोंचा पर्व और बस्तर का दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है।


    क्या है गोंचा पर्व? (Goncha Parv)

    गोंचा पर्व बस्तर अंचल में मनाया जाने वाला खास पर्व है, जो कि आषाढ़ माह की में मनाया जाता है। जिसकी शुरूवात काकतीय नरेश पुरूषोत्तम देव ने की। जगन्नाथ पुरी से लौटते वक्त राजा ने भगवान जगन्नाथ जी के विग्रहों को साथ लाया और इसे बस्तर में स्थापित किया। तबसे प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह की द्वितीय तारीख को जगन्नाथ रथयात्रा के तर्ज पर बस्तर अंचल में भी रथयात्रा निकाली जाती है, जिसे गोंचा पर्व के नाम से जाना जाता है।

    बस्तर दशहरा का आरंभ (Beginning of Bastar Dussehra)

    बस्तर दशहरा का आरंभ पाट जात्रा के रस्म से शुरू होता है। यह पर्व 75 दिनों तक चलने के बाद मुरिया दरबार लगने के बाद समाप्त हो जाता है।

    पाट जात्रा (Pata Jatra)

    इस पर्व का आरंभ श्रावण मास की हरेली अमावस्या से रथ के निर्माण से शुरू होता है। रथ निर्माण के लिए वन से साल वृक्ष की प्रथम लकड़ी को विधिवत काटकर पूजा किया जाता है जिसे पाट कहा जाता है, और इस पूरे विधि विधान को "पाट जात्रा" कहा जाता है।

    डेरी गड़ाई (Deri Gadai kya hai?)

    पाट जात्रा के बाद डेरी गड़ाई की रस्म भादो शुक्ल द्वादश को होती है, जिसमें बिलौरी गावँ के ग्रामवासियों के द्वारा सिरहासार भवन में डेरी लाकर भूमि में पूजा अर्चना कर स्थापित की जाती है। इस रस्म को डेरी गड़ाना या डेरी गड़ाई कहा जाता है। इसके बाद विभिन्न गाँवों से लकड़ियाँ लाकर रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

    काछिन-गादी (Kachin Gadi Rasm kya hai?)

    काछिन देवी मिरगान आदिवासियों की कुल देवी है, काछिन गादी का अर्थ-काछिन देवी को गद्दी देना होता है, प्रत्येक वर्ष अश्विन मास की अमावस्या के दिन पथरागुड़ा में स्थित काछिन देवी के मंदिर से बस्तर दशहरा के शुरूवात के लिए अनुमति मांगा जाता है, जहां पर मिरगान आदिवासी की नाबालिक कुवांरी कन्या को कांटेदार झूले (गद्दी) में लिटाया जाता है और इसके साथ ही बड़े धूम-धाम के साथ बस्तर दशहरा की शुरूवात माता की स्वीकृति से होता है।

    रैला पूजा (Raila Puja)

    बस्तर के काकतीय नरेश अन्नमदेव की बहन रैला देवी का गोदावरी नदी में जल समाधि लेने के बाद प्रतिवर्ष उनकी याद में श्राद्ध पूजा की जाती है, इसे ही रैला पूजा के नाम से जाना जाता है।


    कलश पूजा

    अश्विन शुक्ल प्रथम में नवरात्रि के प्रारंभ दिन माता दंतेश्वरी के मंदिर में कलश स्थापना को कलश पूजा कहा जाता है।

    जोगी बिठाई (Jogi Bithai rasm kya hai?)

    नवरात्रि के प्रथम दिन ही कलश स्थापना के बाद सिरहासार के प्राचीन भवन में "जोगी बिठाई" की रस्म निभाई जाती है, जोगी बिठाई के पूर्व सात मांगुर मछलियों की बलि दी जाती है। इसी दिन सिरहासार भवन में एक गड्ढा खोदा जाता है, जिसमें हल्बा जनजाति का एक व्यक्ति लगातार नौ दिनों तक केवल फल व दूध आहार के रूप में ग्रहण करता है और इस दौरान वह मल-मूत्र का त्याग भी नहीं करता है।

    रथ परिक्रमा

    अश्विन शुक्ल द्वितीया (नवरात्रि के दूसरे दिन) से अश्विन शुक्ल सप्तमी ( नवरात्रि के सातवें दिन) तक फूलों से सजी चार पहिए वाली फूल रथ में राजा बैठते हैं साथ ही देवी दंतेश्वरी का छत्र आरूण रहता है साथ में देवी का पुजारी भी रहता है। प्रतिदिन शाम तक एक निश्चित मार्ग में रथ परिक्रमा की जाती है। फूल रथ की रस्सी को सियारी नामक वृ़क्ष के छाल से तैयार किया जाता है। इस फूलरथ की रस्सियों को प्रतिदिन अलग-अलग गांव के आदिवासियों द्वारा श्रद्धापूर्वक खींचा जाता है, जिससे उनमें अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। सांतवे दिन शाम को मैया के छत्र को मंदिर में ला लिया जाता है।

    निशा जात्रा

    रथ परिक्रमा के समापन के बाद अश्विन शुक्ल अष्टमी अर्थात् दुर्गाष्टमी के दिन निशाजात्रा रस्म की जाती है। इस दिन रात 12 बजे से पूर्व राजा की उपस्थिति में भक्तों का जुलूस इतवारी बाजार की पूजा मंडप तक पहुँचता है।


    जोगी उठाई एवं मावली परघाव

    अश्विन शुक्ल नवमीं की शाम को सिरहासार में योग साधना में बैठे हल्बा व्यक्ति को सम्मानपूर्वक उठाया जाता है एवं ईनाम भेंट स्वरूप दिया जाता है। इसी दिन रात में मावली परघाव होता है, चूंकि मावली माता को दंतेश्वरी माता की बड़ी बहन के रूप में माना जाता है, इसलिए उनकी डोली को दंतेश्वरी मंदिर में स्वागत किया जाता है। मावली माता निमंत्रण पाकर दशहरा पर्व में सम्मिलित होने के लिए बस्तर के जगदलपुर शहर पहुंचती है। पहले इनकी डोली को राजा, राजगुरू और मंदिर के पुजारी कंधे देकर दंतेश्वरी देवी के मंदिर तक पहुंचाते हैं।

    भीतर रैनी

    विजयादशमी के दिन आठ चक्कों वाला विशाल रथ को एक निश्चित मार्ग पर दो बार खींचा जाता है। पूर्व समय में रथ के सामने एक भैंस की बलि भी दी जाती थी जिसे महिषासुर का प्रतीक माना जाता था, परंतु आज के समय में यह परम्परा समाप्त कर दी गई है। यहां के आदिवासियों द्वारा आठ चक्के वाले रथ को प्रथा अनुसार चुराकर कुम्हड़ाकोट नामक स्थान पर ले जाते है।

    बाहर रैनी

    अश्विन शुक्ल एकादशी के दिन राजपरिवार के लोगों के द्वारा नए अन्न को मां दंतेश्वरी को अर्पित कर भोग लगाया जाता है तत्पश्चात माड़िया आदिवासी के लोगों के द्वारा झूलेदार 8 पहिये वाले रथ को कुम्हड़ाकोट से मंदिर के सिंहद्वार तक वापस गाजे-बाजे के साथ लाया जाता है।

    मुरिया दरबार (Muriya Darbar kab lagta hai?)

    अश्विन शुक्ल द्वादश के दिन मुरिया दरबार का आयोजन होता है। मुरिया दरबार सिरहासार भवन में शाम को लगता है। यहां पर निर्विघन दशहरा सम्पन्न होने पर काछिन देवी की पूजा-अर्चना कर सम्मानित किया जाता है। प्राचीन समय में राजा द्वारा यहां दरबार का आयोजन कराया जाता था जिसमें प्रत्येक ग्राम के मुखिया अपनी गांव की समस्याओं पर चर्चा करते थे और राजा इन सभी समस्याओं का निराकरण करते थे। और साथ ही राजा अंतिम क्षण में सभा को संबोधित करते हुए दशहरा सम्पन्न होने की शुभकामनाएं देते हुए समापन की घोषणा करते थे। वर्तमान में विभिन्न विभागों के विकास कार्यो एवं योजनाओं की जानकारी दी जाती हैं।


    Photo Courtesy : Hamar Sanskriti Hamar Tihar Chhattisgarh Vicharmala

    बस्तर दशहरा का वित्त पोषण

    वर्तमान में बस्तर अंचल के दशहरा आयोजन के लिए एक समिति का गठन किया गया है, प्रतिवर्ष इस समिति के लिए एक अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है जो इसका संचालन करता है जिसके लिए वित्त पोषण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।


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    Article by - Vivek

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