मूल कर्तव्य
मूल कर्तव्य भारतीय नागरिकों को प्राप्त नैतिक कर्तव्य है, जिनका पालन नागरिकों के स्वैच्छा पर निर्भर करता है, आईये जानते है मूल/मौलिक कर्तव्यों के बारें मे -
मूल कर्तव्य को कौन से देश से लिया गया है?
मूल कर्तव्य को संविधान में कब जोड़ा गया है?
मूल कर्तव्यों की संख्या कितनी हैं?
मूल कर्तव्य का क्रियान्वयन -
वैसे तो मौलिक कर्तव्यों के पालन ना करने पर किसी प्रकार के दण्ड से दण्डित नहीं किया जा सकता है लेकिन 42वें संविधान संशोधन 1976 में जिन कर्तव्यों को सम्मिलित किया गया है, वे साविधिक कर्तव्य है। उन कर्तव्यों के अनुपालन में विफल होने पर दण्ड का प्रावधान करने के लिए संसद विधि द्वारा नियम बना सकती है। मौलिक कर्तव्य लोगों पर नैतिक उत्तरदायित्व आरोपित करते हैं। जिसका पालन करना भारतीय नागरिकों पर निर्भर करता है।नागरिकों के लिए कौन-कौन से मूल कर्तव्य है?
नागरिकों को प्राप्त 11 मौलिक कर्तव्य -
1. संविधान का पालन करें। उसके आदर्श संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
2. स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करें।
3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करना और अक्षुण्ण रखना।
4. देश की रक्षा करना और आव्हान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करना। धर्म, भाषा, वर्ग आधारित भेदभाव ना करें।
6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें।
7. प्राकृतिक पर्यायवरण वन, झील, नदी, जीव की रक्षा करें, दया भाव रखें।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद तथा सुधार की भावना का विकास करें।
9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें।
10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें।
11. 6 वर्ष की आयु से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के माता-पिता और प्रतिपाल्य के संरक्षक रहे, उन्हें शिक्षा प्रदान करें।
मूल कर्तव्य की विशेषताएँ -
1. मौलिक कर्तव्य में से कुछ नैतिक कर्तव्य हैं तो कुछ नागरिक कर्तव्य। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रगान का आदर करना नागरिक कर्तव्य है जबकि स्वतंत्रता संग्राम के उच्च आदर्शों का सम्मान करना एक नैतिक कर्तव्य है।3. मूल कर्तव्य केवल भारतीय नागरिको के लिए है विदेशियों के लिए नहीं।
4. इनके उल्लंघन के विरूद्ध कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, यद्यपि संसद उपर्युक्त विधान द्वारा इनके क्रियान्वयन के लिए स्वतंत्र है।
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मूल कर्तव्य की आलोचना -
मूल कर्तव्य के विषय में आलोचकों के अपने-अपने मत दिए हैं जिनमें कुछ हैं -1. कर्तव्यों की सूची पूर्ण नहीं हैं क्योंकि इसमें कुछ अन्य कर्तव्य जैसे कर अदायगी, परिवार नियोजन, मतदान आदि शामिल नहीं हैं।
2. कुछ कर्तव्य अस्पष्ट एवं बहुअर्थी है जिसे आम व्यक्ति को समझने में मुश्किल आती है। विभिन्न शब्दों की अलग-अलग व्याख्या हो जाती है। उदाहरण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण, उच्च आदर्श, सामासिक संस्कृति आदि।
मौलिक कर्तव्य का महत्व क्या है?
मूल कर्तव्य के महत्व -
1. मूल कर्तव्य समाज विरोधी एवं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों जैसे सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान करना, राष्ट्र ध्वज को जलाने के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं।
2. मूल कर्तव्य नागरिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो नागरिकों में अनुशासन और प्रतिबद्धता को बढ़ाते है।
3. मूल कर्तव्य अदालतों को किसी विधि की संवैधानिक वैधता एवं उनके परीक्षण के सम्बन्ध में सहायक होते है।
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