बी. एन. सी. मिल मजदूर आंदोलन [1920 ] | BNC Mill Majdoor Andolan

 
छत्तीसगढ़ बी. एन. सी. कॉटन मिल  मजदूर आंदोलन 1920

    बी. एन. सी. कॉटन मिल की स्थापना -

    छत्तीसगढ़ राज्य का राजनांदगाँव जिला जहाँ बी एन सी मिल की स्थापना हुई थी जो छत्तीसगढ़ का पहला काटॅन मिल के रूप में स्थापित की गई थी। जिसकी स्थापना 23 जून 1890 को इंग्लैण्ड के मैकवेथ ब्रदर्स ने राजनांदगाँव के राजा बलराम दास के सहयोग से बनाया था। 1890 में C. P. Milles Limited के नाम से कपड़ा मिल की स्थापना की थी। जिसे 1896 में Shaw Walls Company ने खरीद लिया और मिल का नाम बदल कर (द बंगाल नागपुर कॉटन मिल) रख दिया।

    ठाकुर प्यारेलाल का परिचय -

    छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव जिले के 'देहान' नामक ग्राम में 21 दिसम्बर 1891 में ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम दीनदयाल एवं माता का नाम नर्मदा देवी था। आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के बावजूद भी पंडित नारायण प्रसाद के मदद से बी. ए. पास कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सन् 1916 में वकालत पास की। ठाकुर साहब, माधवराव सप्रे के विचारों से काफी प्रभावित थे।

    अपने विद्यार्थी जीवन में ही सन् 1909 में ठाकुर साहब ने राजनांदगाँव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। असहयोग आंदोलन के दौरान भी ठाकुर साहब ने राजनांदगाँव में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना कर हजारों की संख्या में चरखे बनवाकर उसका महत्व एवं खादी का प्रचार किया। अन्य राष्ट्रीय आंदोलनों में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान अप्रैल 1920 में सामने आया जब उन्होंने राजनांदगाँव के कपड़ा मिल के मजदूरों के हितों के रक्षा के लिए हड़ताल का सफल नेतृत्व किया।

    प्रथम मजदूर आंदोलन (1920) -

    1920 में छ. ग. का श्रमिक आंदोलन का बीजारोपण राजनांदगाँव के बी॰ एन॰ सी॰ मिल्स के मजदूरों ने किया। यहाँ मिल के मजदूरों के साथ अत्याचार किया जाता था। काम अधिक लिया जाता था परन्तु मजदूरी कम दी जाती थी। अतः मिल मजदूरों में रोष था। मिल मजदूरों ने ठाकुर प्यारेलाल सिंह से मिलना शुरू किया और अपनी समस्याएं बताई, कुछ दिनों के बाद मजदूर यूनियन का गठन किया गया जिनकी तीन मांगे थी जो हड़ताल का कारण बना।

    1. मजदूरों के कार्य के अवधि आठ घण्टे निश्चित हो।
    2. काम करने की स्थिति में सुधार हो।
    3. मजदूरों के वेतन बढ़ाएं जाए।

    इन मुद्दों को लेकर ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में मिल मजदूरों ने हड़ताल किया, जो कि 37 दिनों तक चली। इतने लम्बे समय तक चलने वाली देश की यह पहली हड़ताल थी। जिसका असर यह हुआ कि कम्पनी ने मजदूरों के कार्य के घण्टे को कम कर दिया और मजदूरों की सभी माँगें स्वीकार कर ली गई। वेतन में भी वृद्धि एवं अन्य सुविधाएँ भी प्रदान की गई। राजनांदगाँव के इस मजदूर आंदोलन में ठाकुर प्यारेलाल सिंह के अलावा शिवलाल मास्टर और शंकरराव खरे ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


    द्वितीय मजदूर आंदोलन (1924) -

    सन् 1924 में ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में राजनांदगाँव में मजदूरों ने दोबारा आंदोलन कर दिया। इस बार मजदूरों ने लम्बी हड़ताल की। पुलिस की दमनकारी नीति के कारण मजदूर घर-घर आंदोलित होते रहे। हड़ताल की अवधि में मजदूरों व सिपाहियों के बीच एक विवाद हो गया।

    इस विवाद का कारण जातीय भोज में एक सिपाही जूता पहन कर पहुँच गया और खाने के बर्तनों को लात मारी जिसके कारण एक मजदूर ने एक अधिकारी (बाबू गंगाधर राव) को थप्पड़ मार दिया जिससे पुलिस को हस्तक्षेप का मौका मिल गया, पुलिस ने 13 मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और धारा 144 लगाकर मजदूरों को जेल भेज दिया। मजदूरों को छुड़ाने की कोशिश के दौरान गोली चलने से एक मजदूर की मृत्यु हो गई तथा 12 घायल हो गए। ठाकुर साहब ने गोली चलाने की निंदा करते हुए इसकी शिकायत सेन्ट्रल प्राविन्स के गर्वनर को की। परन्तु शासन ने उल्टे ठाकुर साहब को ही इसका जिम्मेदार मानते हुए हिरासत में लिया और रियासत से निष्कासित कर दिया।

    तृतीय मज़दूर आंदोलन (1936) -

    राजनांदगाँव से निष्कासन के बाद ठाकुर साहब रायपुर में रहने लगे थे तथा वहीं से ही मजदूरों की समस्याओं पर जानकारी रखते थे। बी एन सी मिल के द्वितीय आंदोलन के 12 वर्षों के बाद सन् 1936 में मिल प्रबंधन ने मजदूरों के वेतन का 10 प्रतिशत कटौती कर दी। जिससे मजदूरों में असंतोष फैल गया। तब निष्कासित ठाकुर प्यारेलाल सिंह मजदूरों का समर्थन करने के लिए राजनांदगाँव के रेलवेे स्टेशन से ही इस आंदोलन का नेतृत्व किया चूंकि रेलवे स्टेशन का क्षेत्र राजनांदगाँव रियासत के अधीन नहीं आता था अतः ठाकुर साहब रेलवे स्टेशन के विश्रामगृह से ही मजदूरों से सम्पर्क करते रहते थे। 

    इसी बीच प्रबंधन के अधिकारियों और मजदूरों के प्रतिनिधियों के बीच कई समझौता वार्ताएँ हुई, जो मजदूरों के अनुकूल ना रहा। जिससे बहुत सारे मजदूर मिल से निष्कासित कर दिए गए तथा मिल भी ग्यारह महीनों के लिए बंद पड़ा रहा, तब ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने पुनः समझौता वार्ता का दौर चलाया। समझौेता बोर्ड ने ठाकुर साहब के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया और निकाले गए मजदूरों को वापस ले लिया साथ ही ठाकुर साहब का निष्कासन आदेश भी रद्द कर दिया गया। इस प्रकार यह आंदोलन पूर्णतः सफल रहा।

    राजनांदगाँव के बी. एन. सी. मिल आंदोलन को सफल बनाने में जितना प्रयास ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने मजदूरों के हितों के लिए किया, उतना किसी और ने नहीं किया इसलिए वे मजदूरों के सर्वमान्य नेता थे। इसी परिपेक्ष्य में साहित्यकार हरि ठाकुर जी ने लिखा है -
        जिनका जीवन परहित, परसेवा में बीता
       उनसे कोई भी सत्ता बल कभी न जीता
       छत्तीसगढ़ का लाल देश का प्यारा बनकर 
       दीन दलित शोषित का रहा सहारा बनकर।

     


    छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग (CGPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न -

    • प्रश्न - प्रथम बी. एन. सी. मिल मजदूर आंदोलन पर एक टीप लिखिए।
    • Que. – Write a note on the first B.N.C. Mill workers movement.
                                                                             (CGPSC Mains 2016)

    • प्रश्न - 1947 से पूर्व छत्तीसगढ़ में घटित मजदूर आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
    • Que. – Describe the Labour Movements that occurred in chhattisgarh before 1947. 
                                                                                                                              (CGPSC Mains 2013)

    • प्रश्न - राजनांदगाँव के बी. एन. सी. मिल्स के मजदूरों के प्रथम हड़ताल के कारणों की विवेचना कीजिए।
    • Que. – Discuss the reasons for the first strike of labours of B.N.C. Mills, Rajnandgaon.
                                                                                                                              (CGPSC Mains 2019)
           
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