श्रीलंका के आर्थिक संकट को भली-भांति समझने के लिए उसकी पीछे के पहलुओं को
समझना जरूरी है। जहाँ विभिन्न राजनीतिक व आर्थिक गतिविधियाँ हुई, जो आज के
आर्थिक संकट का कारण बनी। आज के आर्थिक संकट की शुरूआत अभी से नहीं हुई है
बल्कि इसका इतिहास पुराना है। राजनीतिक, आर्थिक कुप्रशासन एवं भ्रष्टाचार के
कारण ही आज श्रीलंका में यह स्थिति उत्पन्न हुई है।
जानिए क्या है श्रीलंका की पृष्ठभूमि
- तीसरी सदी ईसा पूर्व में भारत में अशोक के शासनकाल में उसके पुत्र महेन्द्र द्वारा सिंहलीवासियों में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ, जिससे वहां के लोगों ने बौद्ध धर्म अपनाया।
- पूर्व शताब्दी लगभग 5वीं शताब्दी के आस-पास श्रीलंका में शाही सिंहला वंश का शासन था। जिस पर समय-समय पर दक्षिण भारत के चोल वंश द्वारा आक्रमण किया गया।
- जब तक औपनिवेशिक शक्तियों ने कब्जा नहीं किया तब तक सीलोन (श्रीलंका) पर सिंहलीवासी व तमिल शासकों के मध्य युद्ध की स्थिति बनी रही। बाद के काल में औपनिवेशिक शक्तिओं के आगमन पर 1505 ई. में पुर्तगालियों ने सीलोन पर कब्जा किया उसके बाद डच (1658-1796) ने कब्जा कर रखा था।
- 1802 ई. से यह अंगेजों के अधीन रह गया, जहाँ कॉफी, चाय और रबड़ की खेती विकसित हुई।
- सिंहलीवासियों और तमिल जातीय समूहों ने आपस में मिलकर संगठन निर्मित किया और उनके नेताओं के प्रयास से 4 फरवरी, 1948 को सीलोन राष्ट्रमंडल राष्ट्रों का स्वशासी प्रभुत्व बन गया।
सन् 1948-2006 तक श्रीलंका की राजनीतिक गतिविधियाँ
- सन् 1956 में एस.डब्लयू.आर.डी. भण्डारनायके सीलोन के प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने सिहली राष्ट्रवाद का समर्थन करते हुए सिंहली भाषा को देश की आधिकारिक भाषा बना दी। ज्ञात हो कि सिंहली भाषा भाषायी विशेषज्ञों के अनुसार गुजराती और सिंधी से जुड़ी हुई है।
- सन् 1959 में एस.डब्लयू.आर.डी. भण्डारनायके की हत्या कर दी गई उसके बाद उनकी विधवा सिरिमावो भंडारनायके, 1960 में दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
- सन् 1970 के दशक में द लिबरेशन टाइगर्स आफॅ तमिल ईलम (LTTE) एक उग्रवादी अलगाववादी समूह था, जो पूर्वोत्तर श्रीलंका में हिन्दू अल्पसंख्यक तमिलों के लिए एक स्वतंत्र मातृभूमि के लिए लड़ रहा था। लिट्टे की स्थापना 1970 के शुरूआत में वेलुपिल्लई प्रभाकरन के द्वारा किया गया था।
- 22 मई 1972 को सीलोन का नाम बदलकर श्रीलंका कर दिया गया।
- सन् 1978 से श्रीलंका ने राष्ट्रपति शासन प्रणाली अपनाया। इस राष्ट्रपति के शासन तंत्र पर नियंत्रण का कोई सही संस्थागत नियम कायदे नही थे। जिसके फलस्वरूप सत्ताधारी दल द्वारा सत्ता का दोहन किया गया और मनमाने फैसले लिए गए जिसका जनता पर बुरा प्रभाव पड़ा।
- राजनीतिक और आर्थिक सत्ता पर सिंहली बहुमत के एकाधिकार से तमिल अल्पसंख्यक की नाराजगी बढ़ गई और उनके धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण 1983 में खूनी हिंसा हुई।
- इसके कारण तमिल विद्रोही समूह जिसमें सबसे मजबूत विद्रोही समूह तमिल ईलम के लिबरेशन टाइगर्स (तमिल टाइगर्स या LTTE) ने अलग राष्ट्र के मांग के चलते गृह युद्ध शुरू किया, जो कई वर्षों तक चला।
गृहयुद्ध की स्थिति
- दिसम्बर 2001 के चुनावों के बाद रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए। जिसके फलस्वरूप तमिल विद्रोहियों के साथ संघर्ष विराम के लिए फरवरी 2002 में शांति के लिए हस्ताक्षर किए गए। परन्तु कुछ ही महीनों में यह समझौता विफल हो गया। और अगले 2004 के चुनाव में यूनाइटेड पीपुल्स एलान्इस के प्रधानमंत्री के रूप में महिंद्रा राजपक्षे चुने गए।
- इसी साल दिसम्बर 2004 में जबरदस्त सुनामी से एशियाई देश तबाह हो गए, जिससें श्रीलंका मे भी भारी तबाही हुई। इससे देश की आर्थिक स्थिति व विकासात्मक कार्य बाधित हुई। इन सभी कारणों से श्रीलंका में आपात की स्थिति उत्पन्न हो गई और यही आगे चलकर गृह युद्ध का कारण बना।
- सन् 2006 में तमिल टाइगर्स व सरकार के मध्य संघर्ष विराम के उल्लंघन से गृह युद्ध शुरू हो गया। हजारों की संख्या में सैनिक और आम नागरिक मारे गए। और यही विद्रोह की स्थिति कई सालों तक बनी रहीं। अंततः 2009 में श्रीलंकाई सेना ने तमिल टाइगर्स के विद्रोही नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरन को मार गिराया और इसके साथ ही यह संगठन समाप्त हो गया।
उपरोक्त घटनाओं और राजनीतिक परिस्थितओं एवं उग्रवादी
संगठन तमिल टाइगर्स के चलते श्रीलंका विकास के पथ पर अग्रसर ना हो सका साथ ही
सत्ताधारी नेताओं में व्याप्त कुप्रशासन के चलते अर्थव्यवस्था कभी पटरी पर
नही आ पाई थी। आर्थिक गतिविधयों को बढ़ाने के लिए सरकार ने ऋण लेना शुरू कियां
और विदेशी कर्ज के बोझ तले दब गया।
श्रीलंका आर्थिक संकट में कैसे पहुँचा?
- कई आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि कई दशकों की खराब आर्थिक कुप्रबंधन नीतियां इसके लिए जिम्मेदार है। जिसमें श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था दोहरे घाटे की स्थिति में चला गया।
- 2019 के एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) के वर्किंग पेपर में कहा गया कि श्रीलंका एक जुड़वाँ घाटे वाली अर्थव्यवस्था है, जिसका मतलब है कि जब एक देश का राष्ट्रीय व्यय उसके राष्ट्रीय आय से अधिक होती है और साथ ही साथ व्यापार योग्य वस्तुओं और सेवाओं का निर्माण अपर्याप्त होती है तब यह स्थिति पैदा होती है।
- 2019 में कोविड महामारी के कुछ महीने पहले 2019 में चुनाव अभियान में राजपक्षे द्वारा किए गए भारी कर कटौती का वादा किया और जीत हासिल कर लागू किया, जिसके फलस्वरूप यह हुआ कि सरकार को राजस्व में कमी आई और इसी दौरान कोरोना (COVID-19) विश्वभर में फैल गई।
- श्रीलंका की आय मूल रूप से पर्यटन के कारण होती है जो कोरोना के कारण पूरी तरह से चरमरा गई जिसके कारण विदेशी निवेशकों ने अपनी अंतराष्ट्रीय पूंजी बाजार से बाहर निकाल ली। इससे श्रीलंका के अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ। इसके साथ ही विदेशी मुद्रा भण्डारण में दो वर्षों में लगभग 70 प्रतिशत की गिरावट आ गई।
- श्रीलंका में मुख्यतः चाय, कॉफी, नारियल, रबड़ आदि का ही उत्पादन होता है अन्य खाद्यान्न फसलें ना के बराबर ही होती है अधिकतर चावल, गेहूँ, मक्का, बाजरा, तिलहन, दलहन फसलों के लिए निर्यात पर निर्भर रहना पड़ता है। जिसको खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ता था।
- श्रीलंका में पहले ही विदेशी मुद्रा की कमी थी इसके बावजूद भी 2021 में राजपक्षे सरकार द्वारा एक फैसला लिया गया कि रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया और जैविक खेती को प्रोत्साहित किया। परंतु इस प्रतिबंध के चलते किसानों के फसलों को भारी नुकसान हुआ और उनके पैदावार में कमी आई हालांकि इस प्रतिबंध के फैसले को हटा लिया गया परन्तु इससे चावल की फसल में गिरावट आई और कृषि अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ।
- रूस से श्रीलंका में कच्चा तेल व सनफ्लावर आयल आयात होता था जो कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बाधित हो गई। इसके चलते पेट्रोल के रेट में भारी इजाफ़ा हुआ, और मंहगाई बढ़ गई।
श्रीलंका की वर्तमान स्थिति
विदेशी मुद्रा के भारी कमी के चलते तथा विदेशी कर्जों के तले दबकर एवं
राजपक्षे सरकार की नाकामी के कारण श्रीलंका की जनता बहुत ही मुश्किल दौर से
गुजर रही है -
- श्रीलंका की जनता को आवश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ रहा हैं। सरकार ने ईंधन सहित आवश्यक वस्तुओं के आयात के भुगतान करने में असमर्थता जताई है।
- श्रीलंका में पिछले कई महीनों से 13 घंटे से अधिक बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है, ताकि सरकारी खर्च में कमी हो सके।
- जरूरी राशन सामान, फल, सब्जियाँ, दूध, दवाओं की भारी कमी हो गई है तथा कीमतों में भारी उछाल आई है। मंहगाई 50 प्रतिशत से ऊपर चली गई है।
Source : Sri Lankan government & BBC News
- दवाओं के अभाव के चलते स्वास्थ्य सुविधा चरमरा गई है, जिसके चलते अराजकता का माहौल बन गया है।
- श्रीलंका में बसों, ट्रेनों और चिकित्सा वाहनों जैसी आवश्यक सेवाओं के लिए पर्याप्त ईंधन नही है। साथ ही पेट्रोल व डीजल के कीमतें आसमान छू रही है एवं घंटों कतारों में लगने के बाद जनता को मिल रही है। जून 2022 के अंत में सरकार ने गैर-जरूरी वाहनों के लिए पेट्रोल व डीजल की बिक्री पर दो सप्ताह के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। 1970 के बाद ऐसा करने वाला यह पहला देश बन गया है।
- स्कूलों को बंद कर दिया गया है, और साथ ही जनता को घर से काम करने के लिए कहा गया है ताकि संसाधनों की आपूर्ति बचाने में मदद मिल सके।
भारत कैसे मदद कर रहा है?
भारत ने भोजन और दवा सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए
1 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाईन पर हस्ताक्षर किए है। साथ ही राजपक्षे
सरकार ने भारत से 1 बिलियन डॉलर आर्थिक सहायता की माँग की है। फरवरी में ईंधन
पर सहायता के लिए श्रीलंका सरकार के साथ 500 मिलियन डॉलर की क्रेडिट
लाईन पर हस्ताक्षर किए है।
श्रीलंका के लिए आगे की राह क्या हो सकती है?
हाल ही के खबरों में 13 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे
देश छोड़ कर मालदीव भाग गए है। उनके भागने का कारण बढ़ती कीमतों और भोजन व ईधन
की कमी पर बड़े पैमानों पर विरोध प्रदर्शन है।
- श्रीलंकन संविधान के अनुसार जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है तब वहा के प्रधानमंत्री कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त हो जाते है। इसी के चलते राष्ट्रपति राजपक्षे ने उनकी अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया है, जिन्होंने देश भर में आपातकाल की घोषणा की है और कर्फ्यू लगा दिया है।
- IMF जो विश्व अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाएं रखने के लिए व मौद्रिक गतिविधियों को सुदृढ़ तरीके से चलाने के लिए अपने 190 सदस्य देशों के साथ काम करता है ने कहा है कि श्रीलंकन सरकार को किसी भी कीमत पर शर्त के रूप में ब्याज दरों और करों को बढाना होगा। जिसके लिए एक स्थिर सरकार की आवश्यकता होगी। श्रीलंकाई सरकार अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ लगभग 3 अरब डॉलर के ऋण के बारे में बातचीत कर रहा है।
उम्मीद है यह रिसर्चड आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। यह मुद्दा हाल फिलहाल में
बहुत ही महत्वपूर्ण है। आगामी प्रतियोगी परिक्षाओं में इससे प्रश्न पूछे जा
सकते है। इस टापिक से State PSC या UPSC आदि प्रतियोगी परिक्षाओं में
इस पर निबंध लिखे जा सकते है या इससे संभावित प्रश्न पूछे जा सकते है।
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